तमस (उपन्यास) : भीष्म साहनी
लीज़ा को खुश कर पाने के लिए ही वह उसे यहाँ लाया था। अबकी बार लगभग छह महीने के बाद लीज़ा विलायत से लौटी थी, और रिचर्ड नहीं चाहता था कि पिछली कहानी फिर से दोहराई जाए, और लीज़ा नई जगह पर ऊबने लगे और परेशान होकर फिर विलायत लौट जाए। यदि लीज़ा को यह शहर पसन्द नहीं आया तो यहाँ का निवास दोनों के लिए नरक बन जाएगा। वह दिन-भर दफ्तर में काम करने के बाद लौटेगा तो दोनों के बीच कोसा-कासी शुरू हो जाएगी। रिचर्ड ने मन ही मन पक्का इरादा कर लिया था कि सुबह का वक़्त वह लीज़ा के साथ बिताया करेगा, इसी कारण पिछले एक हफ्ते से जब से लीज़ा आई थी, वह कभी ठंडी सड़क पर, कभी टोपी पार्क में तो कभी घुड़सवारी पर उसे बाहर लाता रहा था। अपनी ओर से लीज़ा भी पूरी कोशिश कर रही थी कि वह भी रिचर्ड की रुचियों में रुचि लेने लगे और अपने मन को लगाए रखे। जिले के डिप्टी कमिश्नर की पत्नी के नाते लीज़ा अकेली भी छावनी-सदर में घूमती तो देसी लोग उठ-उठकर सलाम करते थे, भाग-भागकर उसका हुक्म बजा लाते थे, पर कोई यहाँ तक अकेला घूम सकता है, और डिप्टी कमिश्नर का समय अपना समय नहीं होता। इसलिए दोनों के ही मन में अन्दर ही अन्दर इस बात का खटका भी था कि वह ज्यादा देर तक चल पाएगा या नहीं, चाहते हुए भी निभ पाएगा या नहीं।
"वह सुन्दर है," लीज़ा बोली, “वह सामने पहाड़ कौन-सा है? क्या यहीं से हिमालय के पहाड़ शुरू हो जाते हैं?"
“हाँ, यही समझो,” रिचर्ड ने प्रोत्साहित होकर कहा, “और यह घाटी आगे चलकर ऊँचे पहाड़ों के बीच सैकड़ों मील दूर तक चली गई है।"
"कितनी सुनसान-सी घाटी है," लीज़ा बुदबुदाई।
"नहीं लीज़ा, यह बड़ी ऐतिहासिक घाटी है। हिन्दुस्तान में आनेवाले सभी हमलावर इसी रास्ते से आए थे। मध्य एशिया से आनेवाले भी और मंगोलिया से आनेवाले भी।" रिचर्ड का उत्साह बढ़ रहा था, “अलेक्सांडर भी इसी रास्ते हिन्दुस्तान में आया था। आगे चलकर घाटी दो रास्तों में बँट गई है, एक रास्ता तिब्बत की तरफ चला गया है, दूसरा अफगानिस्तान की तरफ़। इसी रास्ते सौदागर लोग भी और बुद्ध धर्म के प्रचारक भी दूर-दूर तक जाते थे। बड़ा ऐतिहासिक इलाका है। मैं तो पिछले महीने-भर से इसमें घूम रहा हूँ। इतिहासकार के लिए तो यह इलाका बेशकीमत है। जगह-जगह पुरानी इमारतों के खंडहर हैं, किले, बुद्ध-विहार, सराएँ..."
"तुम तो रिचर्ड यों बातें कर रहे हो जैसे यह तुम्हारा अपना देश हो!" लीज़ा ने हँसकर कहा।
"देश अपना नहीं है लीज़ा, पर इतिहास का विषय तो अपना है!" रिचर्ड ने मुस्कराकर कहा। फिर घुड़सवारी का बेंत पहाड़ी की ओर दिखाते हुए बोला, "उस पहाड़ के पीछे करीब सत्तरह मील की दूरी पर टेक्सिला के खंडहर हैं। टेक्सिला जानती हो न?"
"हाँ, नाम सुना है।" "वहाँ किसी ज़माने में बहुत बड़ी यूनिवर्सिटी हुआ करती थी।"
लीज़ा मुसकरा दी। वह समझ गई कि रिचर्ड अब घाटी का सारा इतिहास सुनाएगा। उसे रिचर्ड का उत्साह अच्छा लगा। रिचर्ड सूखे पत्थरों के बारे में भी बड़े उत्साह से बातें कर सकता है, इसमें बच्चों-जैसा कुतूहल है, डिप्टी कमिश्नर होने के बावजूद एक प्रकार का भोलापन है। काश कि वह भी इन बातों में दिलचस्पी ले सकती।
“वहाँ पर एक म्यूजियम भी है, तुम्हें अच्छा लगेगा। वहाँ से हाल ही में मैं गौतम बुद्ध का एक बुत लाया हूँ।"
"क्यों, पहले तुम्हारे पास क्या कम बुत थे जो एक और उठा
लाए हो?"